चौरीचौरा के गौरवशाली विरासत की मशाल को जला रहा अवाम का सिनेमा

चौरीचौरा गोरखपुर। बाँसगाँव सन्देश। चौरीचौरा घटना के सौ वर्ष पूरे होने पर चौरीचौरा शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में सातवें चौरीचौरा इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल के अवसर पर ऐतिहासिक शहीद स्मारक पर आजादी आंदोलन के योद्धाओं को आदरांजलि दी गयी। साथ ही अवाम का सिनेमा बैनेर तले बनी फिल्म प्रतिकार चौरीचौरा का प्रदर्शन किया गया।
एक से चार फरवरी 1922 के चौरीचौरा घटनाक्रम का हुआ प्रदर्शन
1 फरवरी 1922 को मुंडेरा बाजार में भगवान अहीर और उनके दो साथियों के पहले से चिढ़े दरोगा गुप्तेश्वर सिंह ने सरेआम पीट-पीट कर लहूलुहान कर दिया। इसी अपमान की बदौलत 4 फरवरी 1922 को थाना फूंकना या सिपाहियों की हत्या होना अकारण नहीं था बल्कि किसी लंबे समय से जमीदारों और पुलिसिया गठजोड़ के दमन का नतीजा रहा है। 4 फरवरी 1922 की सुबह डुमरी खुर्द में हुई उस जनसभा का उद्देश्य चौरी चौरा थाना जाकर दरोगा गुप्तेश्वर सिंह से भगवान अहीर को पीटने का कारण जानना था। लेकिन उपनिरीक्षक द्वारा अकारण भीड़ पर गोली चलाने से दो सत्याग्रियों की मौत हो जाती है। तब सत्याग्रहियों ने अपनी कार्यनीति पर बदलाव करते हुए हिंसक रुख अख्तियार कर लिया। लेकिन महिलाओं और बच्चों को भाग जाने दिया। इस एक्शन से प्रभावित होकर संयुक्त प्रांत में हर कहीं जनता ने विद्रोह की शुरुआत कर दी।जिससे फिरंगी हुकुमत हैरत और सकते में आ गई। पूरे इलाके को पुलिसिया दमनजोन बना खूब उत्पीड़न किया गया।
उस दिन के घटनाक्रम की सच्चाई कुछ इस तरह सामने आती है कि दोपहर बाद 4बजे किसानों के नेतृत्व में दो हजार से ज्यादा गांव वालों ने चौरी चौरा थाना घेर लिया। ब्रिटिश सत्ता के लंबे उत्पीड़न और अपमान की प्रतिक्रिया में थाने की इमारत में आग लगा दी गई थी। जिसमें छुपे हुए 24 सिपाही जलकर मर गए। चौरी चौरा प्रकरण में 273 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। जबकि 54 फरार हो गए थे। इनमें से एक की मौत हो गई थी। 272 में से 228 पर मुकदमा चला, मुकदमें के दौरान 3 लोगों की मौत हो गईजिससे 225 लोगों के खिलाफ ही फैसला आया था। ‘किंग एंपायर बनाम अब्दुलाह अन्य’के नाम से सेशन कोर्ट में चले मुकदमें में निम्न जातियों के गरीब ज्यादा रहे।
आजाद भारत सकार की सरकार देर से जागी
आजादी के बाद भारत सरकार ने स्वराज पाने की चाहत में कुर्बान हुए चौरी-चौरा विद्रोह के क्रांतिकारियों को आधिकारिक रुप से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मान लिया हो,ऐसा भी नहीं था। इसके लिए तमाम लोगों ने साझे तौर पर खूब कोशिशें की। दरअसल चंद्रशेखर आजाद के शहादत की 50वीं सालगिरह पर इलाहाबाद में अखिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन आयोजित किया गया। 27 फरवरी 1981 को इस सम्मेलन का उद्धाटन इंदिरा गांधी ने किया। इसी सम्मेलन में पिपरीदीह ट्रेन डकैती के महानायक जामिन अली और क्रांतिकारी झारखंडे राय ने इंदिरा गांधी के सामने चौरा चौरा का मुद्दा उठाया।
तत्कालीन विधान सभा सदस्य गुरु प्रसाद ने इसके लिए 3जून,1981 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को तथा 30 अक्टूबर 1981 गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को पत्र लिखे थे। संसद सदस्य झारखंडे राय के अथक प्रयासों से ही इस विद्रोह के क्रांतिकारियों को स्वतंत्रता सेनानी माना जा सका।
गौरतलब है कि इंदिरा गांधी को सुझाव के बाद कि पूरे इलाके की जनभावना चौरी चौरा के योद्धाओं के साथ जुड़ी है तब आगामी चुनावों में इसका लाभ कांग्रेस पार्टी को मिलेगा। बहरहाल 6 फरवरी, 1982 को चौरी चौरा विद्रोह में शहीद हुए किसानों की याद में बने स्मारक का शिलान्यास इंदिरा गांधी ने किया। लेकिन इसका उद्धाटन 10 वर्ष बाद 19जु लाई,1993 को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा हो सका। हैरत की बात है कि किसानों पर गोली चलाने वाले और चौरी चौरा विद्रोह में मारे गए ब्रिटिश सिपाहियों के लिए शहीद स्मारक का उद्घाटन फरवरी 1924 में पुराने थाने की जगह, संयुक्त प्रांत के गर्वनर सर विलियम मारिस द्वारा किया गया। उद्घाटन भाषण में गर्वनर ने देश के गरीब किसानों का बहुत मजाक उड़ाया था। इसे शहीद स्मारक कहना और पूजना चौरी चौरा के महानायकों का अपमान है।
फांसी पर चढ़े 19 क्रांतिकारियों के अलावा आजीवन, 8 साल, 5 साल, 3 साल की सजा भोगने वाले भूखे गरीब स्वयंसेवको में से कुछ ने तो कारागारों में ही दम तोड़ दिया था और जो बचे हुए थे वे कारागारों की अमानवीय यातनाओं के बाद इस कदर टूट गए थे कि जल्द ही इस मतलबपरस्ती की दुनिया से चल बसे। उनके परिवार दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर थे। लेकिन आजाद भारत की सरकार के पास अभी सुनवाई होनी बाकी थी। गौरतलब है कि 11 मार्च 1986 को मुख्यमंत्री कार्यालय से गोरखपुर के डीएम को एक पत्र लिखा गया। मुख्यमंत्री सहायता कोष से चौरी चौरा के मात्र 29 लोगों को या उनके आश्रितों को प्रति व्यक्ति रुपये 325 की एकमुश्त की सहायता राशि प्रदान करने के लिए रुपए 9,425 रुपए का चेक भेजा गया था। हालांकि 4जनवरी, 1994को चौरी चौरा विद्रोह के 96 सेनानियों के आश्रितों को पेंशन देने का अलग-अलग आदेश जारी हुआ लेकिन लेटलतीफी में एक-दो-चार साल गुजर गए।
फिल्म फेस्टिवल के दौरान क्रांति वीरो के परिजन का किया गया सम्मान

उपर्युक्त गौरवशाली इतिहास के मद्देनजर जन विद्रोह के सौ बरस पूरे होने पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम चौरी चौरा स्मारक पर आयोजित करके क्रांति वीरो के परिजन का सम्मान किया गया।
कार्यक्रम के आयोजक राम उग्रह यादव प्रिंसिपल, संयोजक शाह आलम, उदय प्रताप, दयानन्द यादव विद्रोही, नरसिंह यादव, श्याम देव, शैलेश प्रधान, साहब यादव, धन्नजय यादव, जवाहिर यादव, राकेश यादव, राम दवन, मैनुद्दीन, शारदा नंद प्रधान, रूदली केवट, चौथी, लाल बाबू, अविनाश गुप्ता, धीरेन्द्र प्रताप,पारस नाथ मौर्य, विपिन निषाद, धनुष धारी यादव, रवि तिवारी आत्मानंद और सैकड़ों की संख्या से ज्यादा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिजन तथा ग्रामीण उपस्थित थे। उक्त कार्यक्रम के सफल आयोजन पर लेखक योगेन्द्र यादव जिज्ञासु ने बधाई दिया।
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