भारत माँ को आजाद कराने वाले रणबांकुरों की रही शरणस्थली खोपापार गाँव
छोटे गांधी के रूप में प्रसिद्ध थे पण्डित रामबली मिश्र
गोला गोरखपुर।अशोक कुमार।आजादी की लड़ाई में गोरखपुर जिले के दक्षिणांचल में स्थित वर्तमान गोला तहसील क्षेत्र का खोपापार गाँव ब्रिटिश हुकूमत में छोटा साबरमती के नाम से प्रसिद्ध था और पण्डित रामबली छोटे गाँधी के रूप में प्रसिद्ध थे यह छोटा सा गाँव पूर्वांचल के राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बिन्दु बन गया था। इस गांव में क्षेत्र के सभी वीर सपूत दिग्गज कांग्रेसी भारत माँ को स्वतंत्र कराने निकले जाबांज रणबांकुरे आश्रय पाते थे। परंतु आज आजादी मिलने के बाद भी इस गाँव में कुछ भी नहीं है। जिससे इन बलिदानियों के विषय में सही जानकारी मिल सके।अपने विकास की राह जोह रहा यह छोटा सा खोपापार गांव।
बताते चलें कि छोटे गाँधी के रूप में प्रसिद्ध ब्रिटिश हुकूमत को हिलाने देने वाले पण्डित रामबली मिश्र का जन्म उरूवा ब्लाक के माल्हनपार के नजदीक भरवलिया गाँव में हुआ था ।बचपन में पिता के निधन के बाद उनकी माता जी अपने मायके खोपापार आ गयी और पिता के यहां आकर रहने लगी अपने को पीस हारिन का पुत्र कहने वाले श्री मिश्र की प्रारम्भिक शिक्षा बनवारपार देईडीहा स्कूल से प्राप्त हुई मिडिल की शिक्षा गोला से प्राप्त हुई सन 1920 में जिला परिषदीय विद्यालय बारानगर में अध्यापक नियुक्त हुए ।परन्तु उस समय राजनैतिक हालात के परिणाम स्वरुप उनके मन में भी राष्ट्र प्रेम की तरंगे तरंगित हो उठी।
देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए सत्याग्रही बने पण्डित रामबली मिश्र
साइमन कमीशन जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड तथा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन के परिणाम स्वरुप अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए सत्याग्रही बन गए अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया जेल में ही थे तो उनकी माता का देहावसान हो गया।इन दिनों में राजीव नाम से राष्ट्र प्रेम सम्बन्धी कविताएं लिखते थे।परंतु चौरी चौरा की घटना के बाद गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने से पूरा देश स्तब्ध हो गया सन 1921 में पं रामबली मिश्र गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार में बतौर अध्यापक नियुक्त हुए और विद्यालय का वार्डन बन गए उस समय उन्होंने छात्रावास प्रांगण में तिरंगा झंडा फहराया अंग्रेजी सरकार के आदेश पर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने तिरंगा झंडा हटाने को कहा श्री मिश्र ने त्याग पत्र दे दिया और अपने गाँव खोपापार आकर गाँधी की हिंदी भाषा देवनागरी लिपि का प्रचार-प्रसार करने लगे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में अनेक विद्यालय खोला।
सन 1940 में अखिल भारतीय चरखा संघ का किया स्थापना
सन 1930 में हिंदी साहित्य विद्यालय खोपापार व 1940 में अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना किया।यह सारे विद्यालय आवासीय थे क्षेत्र के लोगों के सहयोग से विद्यालय का खर्चा चलता था। इस विद्यालय में महाराष्ट्र तमिलनाडु आंध्र प्रदेश गुजरात आदि प्रान्त के छात्र आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। इस की सराहना महात्मा गाँधी ने 1936 में अपनी हरिजन पत्रिका में इसका पूर्वांचल राष्ट्रीय चेतना केंद्र के रूप में उल्लेख किया था।
अंग्रेजों ने 1942 में जला दिया पण्डित जी का घर
1942 में अंग्रेजों द्वारा पण्डित रामबली मिश्र के यहां खोपापार में आक्रमण कर घर जला दिया गया। साथ ही उनके यहां चल रहे चरखा केंद्र को भी फुक दिया गया।अंत में पण्डित रामबली मिश्र व उनकी पत्नी कैलाशी देवी को गोरखपुर जेल में बन्द कर दिया गया। जेल में ही इन लोगों की मुलाकात बलिया जिले के रामपुर कानूनगो गाँव के निवासी चन्द्रिका प्रसाद वकील व उनकी पत्नी से हुई ।जो दोनों लोग आज़ादी की लड़ाई में जेल में बन्द थे। जेल में ही चन्द्रिका प्रसाद के पत्नी का निधन हो गया। उनके पास दो पुत्र थे बड़े पुत्र को पण्डित रामबली मिश्र ने गोद ले लिया ।जेल से छूटने के बाद 1952 में कैलाशी देवी धुरियापार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर विधायिका बनी दोनों स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी आज नहीं है लेकिन उनका गाँव आज भी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है और विकास की राह जो हो रहा है कि कब पलटेंगे मेरे भी दिन। इस गाँव पर शासन प्रशासन का ध्यान हो जाता तो गाँव विकास के पथ पर आगे हो जाता।