बलरामपुर के प्राकृतिक जलाशयों में जमा सिल्ट। – फोटो : BALRAMPUR
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बलरामपुर। नेपाल सीमा से सटे असिचिंत इलाके में सिंचाई के लिए बने प्राकृतिक जलाशय पानी की कमी से जूझ रहे हैं। इनमें सिल्ट जमा होने के कारण पानी ही नहीं बचा है। इन जलाशयों से सिंचाई के लिए निकली नहरों में धूल उड़ रही है। पानी के अभाव में खेतों में लगी गेहूं की फसल सूख रही है। किसानों ने जिला प्रशासन से जलाशयों में बेहतर जल प्रबंधन की मांग की है।
हरैया सतघरवा, तुलसीपुर, गैसड़ी तथा पचपेड़वा का इलाका नेपाल से माना जाता है। इस इलाके में करीब डेढ़ लाख किसान व उनका परिवार खेती किसानी पर ही निर्भर है। यहां पर नलकूप तथा ट्यूबवेल की बोरिंग करा पानी टेढ़ी खीर है। आजादी से पूर्व इन इलाकों में सिंचाई के लिए बलरामपुर राज परिवार ने करीब एक दर्जन प्राकृतिक जलाशय बनवाए।
इन जलाशयों में बारिश का पानी इकट्ठा किया जाता था। इन्हीं जलाशयों में सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई है। समय-समय पर जलाशयों से नहरों में पानी छोड़ा जाता है ताकि किसान अपनी फसलों की सिंचाई कर सकें। आजादी के बाद इन जलाशयों का प्रबंधन सरकार के सिंचाई विभाग के हाथों में चला गया। बीते कुछ वर्षों से जलाशयों में सिल्ट जमा होने के कारण इनमें पर्याप्त मात्रा में वर्षा जल का संचयन नहीं हो पा रहा है।
रबी की फसल के समय अधिकांश जलाशयों में पर्याप्त पानी ही नहीं है। जलाशय रेहरा बांध से निकली नहरों में धूल उड़ रही है। सिंचाई के अभाव में किसानों की गेहूं की फसल सूखी व अविकसित है। किसान भगवान भरोसे बारिश होने का इंतजार कर रहे हैं।
इसी तरह से खैरमान, भगवानपुर व कोहरगड्डी आदि जलाशय भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं। क्षेत्रीय किसान राकेश, राम प्रसाद, बिस्मिल्ला, सुधीर सिंह और इलियास आदि ने डीएम ने जलाशयों की सिल्ट सफाई तथा बेहतर जल प्रबंधन किए जाने की मांग की है ताकि असिंचित क्षेत्र की सूखी धरती पर फसलों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सके।
बलरामपुर। नेपाल सीमा से सटे असिचिंत इलाके में सिंचाई के लिए बने प्राकृतिक जलाशय पानी की कमी से जूझ रहे हैं। इनमें सिल्ट जमा होने के कारण पानी ही नहीं बचा है। इन जलाशयों से सिंचाई के लिए निकली नहरों में धूल उड़ रही है। पानी के अभाव में खेतों में लगी गेहूं की फसल सूख रही है। किसानों ने जिला प्रशासन से जलाशयों में बेहतर जल प्रबंधन की मांग की है। विज्ञापन
हरैया सतघरवा, तुलसीपुर, गैसड़ी तथा पचपेड़वा का इलाका नेपाल से माना जाता है। इस इलाके में करीब डेढ़ लाख किसान व उनका परिवार खेती किसानी पर ही निर्भर है। यहां पर नलकूप तथा ट्यूबवेल की बोरिंग करा पानी टेढ़ी खीर है। आजादी से पूर्व इन इलाकों में सिंचाई के लिए बलरामपुर राज परिवार ने करीब एक दर्जन प्राकृतिक जलाशय बनवाए।
इन जलाशयों में बारिश का पानी इकट्ठा किया जाता था। इन्हीं जलाशयों में सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई है। समय-समय पर जलाशयों से नहरों में पानी छोड़ा जाता है ताकि किसान अपनी फसलों की सिंचाई कर सकें। आजादी के बाद इन जलाशयों का प्रबंधन सरकार के सिंचाई विभाग के हाथों में चला गया। बीते कुछ वर्षों से जलाशयों में सिल्ट जमा होने के कारण इनमें पर्याप्त मात्रा में वर्षा जल का संचयन नहीं हो पा रहा है।
रबी की फसल के समय अधिकांश जलाशयों में पर्याप्त पानी ही नहीं है। जलाशय रेहरा बांध से निकली नहरों में धूल उड़ रही है। सिंचाई के अभाव में किसानों की गेहूं की फसल सूखी व अविकसित है। किसान भगवान भरोसे बारिश होने का इंतजार कर रहे हैं।
इसी तरह से खैरमान, भगवानपुर व कोहरगड्डी आदि जलाशय भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं। क्षेत्रीय किसान राकेश, राम प्रसाद, बिस्मिल्ला, सुधीर सिंह और इलियास आदि ने डीएम ने जलाशयों की सिल्ट सफाई तथा बेहतर जल प्रबंधन किए जाने की मांग की है ताकि असिंचित क्षेत्र की सूखी धरती पर फसलों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सके।
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